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दोमट मिट्टी

धनिया की खेती से होने वाले फायदे

धनिया की खेती से होने वाले फायदे

दोस्तों आज हम बात करेंगे धनिया की खेती की, धनिया खेती के लिए बहुत ही उपयोगी फसल मानी जाती हैं। क्योंकि बिना धनिया के किसी भी प्रकार का खाना अधूरा रह जाता है। धनिया की पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बनाए हैं।

धनिया की खेती:

धनिया के इस्तेमाल से भोजन स्वादिष्ट बनता है तथा भोजन में खुशबू बनी रहती है। धनिया की पत्ती और मसालों में खड़ी धनिया दोनों खानों में अपना अलग ही स्वाद लगाते हैं। 

धनिया ना सिर्फ अभी बल्कि प्राचीन काल से ही मसालों में अपनी अलग भूमिका बनाए हुए है। भारत देश मसाले की भूमि मानी जाती है ऐसे में धनिया एक मुख्य और महत्वपूर्ण मसालों में से एक है।

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किसानों के अनुसार धनिया के बीजों में विभिन्न विभिन्न प्रकार के औषधीय गुण मौजूद होते हैं। इन औषधीय गुणों का उपयोग कुलिनरी , कार्मिनेटीव और डायरेटिक आदि के  रूप में किया जाता है।

धनिया की खेती करने वाले क्षेत्र:

किसानों को धनिया की खेती करने से अधिक लाभ पहुंचता है, क्योंकि यह कम लागत में भारी मुनाफा देने वाली फसलों में से एक हैं। कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां धनिया की खेती भारी मात्रा में की जाती है। 

जैसे मध्यप्रदेश में करीबन धनिया की खेती 1,16,607 के आस पास होती हैं। 1,84,702 टन धनिया का भारी उत्पादन मिलता है। कृषि विशेषज्ञ के अनुसार धनिया के उत्पादन वाले और भी क्षेत्र हैं जहां पर धनिया की भारी उत्पादकता प्राप्त की जाती है। जैसे गुना, शाजापुर ,मंदसौर, छिंदवाड़ा, विदिशा आदि जगहों पर धनिया की फसल उगाई जाती है।

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धनिया की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु का चयन :

धनिया की खेती के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु शुष्क और ठंडे मौसम की जलवायु मानी जाती है। इन मौसमों में धनिया की खेती का भारी  उत्पादन होता है। धनिया के बीजों को अंकुरित या फूटने के लिए करीब 26 से लेकर 27 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। 

धनिया के बीजों के अंकुरित के लिए या तापमान सबसे उचित माना जाता है। किसानों के अनुसार धनिया शीतोष्ण जलवायु फसल है। इसीलिए इन के फूल और दानों को पाले वाले मौसम की जरूरत पड़ती है। कभी कभी धनिया की फसल के लिए पाले का मौसम नुकसानदायक भी होता है।

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धनिया की फसल के लिए भूमि को तैयार करना :

धनिया की फसल के लिए अच्छी दोमट वाली भूमि सबसे उपयोगी मानी जाती है। सिंचाई की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अच्छी जल निकास वाली भूमि सबसे उपयोगी होती है। जो फसलें असिंचित होती हैं उनके लिए काली भारी भूमि ठीक समझी जाती है। 

इसीलिए किसानों के अनुसार धनिया की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी दोमट मिट्टी या फिर मटियार दोमट सबसे उपयोगी होती है। मिट्टियों का पीएच मान लगभग 6 पॉइंट 5 से लेकर 7 पॉइंट 5 का सबसे उपयोगी होता है। धनिया की फसल बुवाई करने से पहले खेतों को भली प्रकार से जुताई की आवश्यकता होती है। 

अच्छी गहराई प्राप्त हो जाने के बाद ही बीज रोपण का कार्य शुरू करें। धनिया की फसल के लिए भूमि को करीब दो से तीन बार अड़ी खड़ी जुताई की आवश्यकता होती है। जुताई करने के बाद खेतों में भली प्रकार से पाटा लगाना चाहिए।

धनिया की फसल बोने का सही समय चुने:

धनिया की फसल बोने का सही समय किसान अक्टूबर और नवंबर के बीच का बताते हैं। करीब 15 से 20 अक्टूबर के बीच धनिया की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। 

धनिया की फसल रबी मौसम में बोई जाने वाली फसल है। धनिया की फसल की बुवाई से किसानों को बहुत लाभ पहुंचता है।अक्टूबर में धनिया के दाने आना शुरू हो जाते हैं। तथा नवम्बर में हरे पत्ते फसल बनकर लहराने लगते हैं। पाले से फसल की खास देखभाल करने की आवश्यकता होती है।

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धनिया की फसल को सुरक्षित रखने के लिए बीज उपचार:

धनिया की फसल को सुरक्षित रखने के लिए  रोगों से बचाव के लिए कार्बेंन्डाजिम और थाइरम का प्रयोग करना चाहिए। इनके इस्तेमाल से भूमि और बीजों दोनों का ही रोगों से बचाव होता है। 

जिन रोगों से फसलें खराब होने का भय रहता है, जनित रोगों से बचाव के लिए 500 पीपीएम तथा में बीजों को स्टे्रप्टोमाईसिन द्वारा उपचार करना चाहिए।

धनिया की फसल में उपयुक्त सिंचाई:

धनिया की फसल की पहली सिंचाई बीज रोपण करते समय करनी चाहिए। उसके बाद दो-तीन दिन के भीतर तीन से चार बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। सिंचाई करते वक्त आप को जल निकास की व्यवस्था को सही ढंग से बनाए रखना होगा, ताकि किसी भी प्रकार का रोग या जल एकत्रित होकर फसल खराब ना होने पाए। 

किसानों के अनुसार धनिया की फसल उनकी आय के साधन को मजबूत बनाते हैं। धनिया की पत्तियां और धनिया के बीच दोनों ही उपयोगी होते हैं। दोस्तों हम उम्मीद करते हैं। कि आपको हमारा यह आर्टिकल धनिया की खेती से होने वाले फायदे पसंद आया होगा। 

हमारे इस आर्टिकल  में सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद है जो आपके बहुत काम आ सकती है। यदि आप हमारी दी गई सभी प्रकार की जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ तथा अन्य सोशल प्लेटफॉर्म पर शेयर करें। धन्यवाद।

तुलसी की खेती करने के फायदे

तुलसी की खेती करने के फायदे

दोस्तों आज हम बात करेंगे तुलसी की खेती की। जिस प्रकार विभिन्न प्रकार की फसलें जैसे दाल, गन्ना, गेहूं, जौ, बाजरा आदि पारंपरिक फसलें  मानी जाती है, उसी प्रकार औषधि के रूप में तुलसी की खेती की जाती है। तुलसी की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें। 

तुलसी की खेती:

वैसे तो किसान गेहूं, गन्ना, धान आदि की फसल की खेती करते हैं और यह खेती वे लम्बे समय से करते आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में किसान इन खेतीयों को पारंपरिक तौर पर करते हैं। परंतु प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार, हरदोई के एक किसान ने इन परंपराओं से हटकर, तुलसी की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाया है, तुलसी की फसल की खेती से काफी मुनाफा कमाया है। जिले के इस किसान ने पारंपरिक फसलों की बुवाई से हटकर अलग कार्य कर दिखाया है, जिसके लिए लोग उसकी काफी प्रशंसा करते हैं। ऐसे में आप इस किसान के नाम को जानने के लिए जरूर इच्छुक होंगे। हरदोई के इस किसान का नाम अभिमन्यु है, ये हरदोई के नीर गांव में निवास करते हैं। अभिमन्यु तुलसी की खेती लगभग 1 हेक्टेयर की भूमि पर कर रहे हैं, जहां उन्हें अन्य फसलों से ज्यादा मुनाफा मिल रहा है। ये खेती कर 90 से 100 दिनों के भीतर अच्छी कमाई कर लेते हैं।

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तुलसी के तेल की बढ़ती मांग:

मार्केट दुकानों आदि जगहों पर तुलसी के तेल की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं। क्योंकि तुलसी स्वास्थ्य तथा औषधी कई प्रकार से काम में  लिया जाता है तथा विभिन्न विभिन्न प्रकार की औषधि बनाने के लिए तुलसी के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं दूसरी ओर यदि हम बात करें, त्वचा को आकर्षित व कुदरती निखार देने की, तो भी तुलसी के तेल का ही चुनाव किया जाता है। ऐसी स्थिति में मार्केट तथा अन्य स्थानों पर तुलसी की मांग तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में किसान तुलसी की खेती कर अच्छी कमाई की प्राप्ति कर सकते हैं। 

तुलसी के तेल की कीमत:

तुलसी के तेल की कीमत लगभग 1800 से  2000 प्रति लीटर है। करोना जैसी भयानक महामारी के समय लोग ज्यादा से ज्यादा तुलसी के तेल का इस्तेमाल कर रहे थे। तुलसी के तेल का इस्तेमाल देखते हुए इसकी कीमत दिन प्रतिदिन और बढ़ती गई। बाजार और मार्केट में अभी भी इनकी कीमत उच्च कोटि पर है। 

तुलसी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चयन:

किसानों के अनुसार कम उपजाऊ वाली जमीनों पर तुलसी की खेती बहुत ज्यादा मात्रा में होती है। जिन भूमियों में जल निकास की व्यवस्था सही ढंग से की गई हो उन भूमि पर उत्पादन ज्यादा होता है। बलुई दोमट मिट्टी तुलसी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

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उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु तुलसी की खेती के लिए उपयोगी है। 

तुलसी की खेती करने के लिए भूमि को तैयार करना:

तुलसी की खेती करने से पहले भूमि को हल या किसी अन्य उपकरण द्वारा अच्छे से जुताई कर लेना चाहिए। एक अच्छी गहरी जुताई प्राप्त करने के बाद ही बीज रोपण का कार्य शुरू करना चाहिए। सभी प्रकार की भूमि तुलसी की खेती करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। 

तुलसी के पौधों की बुवाई तथा रोपाई करने के तरीके:

तुलसी के बीज सीधे खेतों में नहीं लगाए जाते हैं, इससे फसल पर बुरा असर पड़ता है। तुलसी की फसल की बुवाई करने से पहले, कुछ दिनों तक इन्हें नर्सरी में सही ढंग से तैयार करने के बाद ही खेतों में इसकी रोपाई का कार्य करना चाहिए। सीधे बीज को खेतों में लगाना फसल को खराब कर सकता है। किसान तुलसी की खेती करने से पहले तुलसी के बीजों को नर्सरी में सही ढंग से तैयार करने की सलाह देते हैं।

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तुलसी के पौधे को तैयार करने के तरीके:

तुलसी के पौधों को बोने से पहले किसान खरपतवार को पूरे खेत से भली प्रकार से साफ करते हैं। उसके बाद लगभग 18 से 20 सेंटीमीटर गहरी जुताई करते हैं। तुलसी की खेती के लिए लगभग 15 टन सड़ी हुई गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी के पौधे के लिए क्यारियों की दुरी : पौधे से पौधे की दूरी ३० -४० सेंटीमीटर व लाइन से लाइन की दूरी ३८ -४६ सेंटीमीटर रखनी चाहिए। खाद के रूप में 20 किलोग्राम फास्फोरस और पोटाश का भी इस्तेमाल किया जाता है। बुवाई के 15 से 20 दिन के बाद खेतों में नत्राजन डालना फसल के लिए उपयोगी होता है। तुलसी के पौधे छह ,सात हफ्तों में रोपाई के लिए पूरी तरह से तैयार हो।

 

तुलसी के पौधों की रोपाई का उचित समय

तुलसी के पौधों की रोपाई का सही समय दोपहर के बाद का होता है। तुलसी के पौधों की रोपाई सदैव सूखे मौसम में करना फसल के लिए उपयोगी होता है। रोपाई करने के बाद जल्द ही सिंचाई की व्यवस्था बनाए रखना चाहिए। मौसम बारिश का लगे तब आप रोपाई का कार्य शुरू कर दे। इससे फसल की अच्छी सिंचाई हो जाती है। 

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